Naamkaran 2020
दुनिया में नाम हर इंसान की पहचान होती है। हर व्यक्ति को उसके नाम से पहचाना और पुकारा जाता है, इसलिए हर आदमी चाहता है कि उसका नाम सुंदर और अर्थ पूर्ण हो। यही वजह है कि हर माता-पिता अपने बच्चे का नाम अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार रखते हैं। हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म के बाद नामकरण संस्कार किया जाता है। मुंडन, अन्नप्राशन, विद्यारंभ और कर्णवेध की तरह नामकरण संस्कार भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म है।
क्या होता है नामकरण संस्कार?
आमतौर पर विद्यारंभ संस्कार तब किया जाता है जब बच्चा 5 साल का हो जाता है।
हालांकि माता-पिता बालक का ये संस्कार उस वक़्त भी करा सकते हैं जब बच्चे की उम्र अपनी शुरूआती शिक्षा करने की हो चुकी हो।
चूंकि आजकल, बच्चे कम उम्र में ही स्कूल जाने लगते हैं, जिससे अब विद्यारंभ संस्कार के लिए उम्र 5 साल की बजाय 3 से 4 साल में भी किया जाता है।
विद्यारंभ संस्कार करने के लिए किसी विशेष स्थान को निर्धारित नहीं किया गया है।
यह हर उस स्थान पर किया जा सकता है जहां कोई भी बच्चा अपनी शिक्षा की शुरुआत कर सकता हो और उस स्थान पर इस संस्कार से जुड़े सभी अनुष्ठानों का पालन किया जा सके।
नामकरण संस्कार का अर्थ है जन्म के बाद किसी बच्चे का नाम रखना। हिन्दू धर्म में बताये गये 16 संस्कारों में से नामकरण पांचवां संस्कार होता है। नामकरण संस्कार बच्चे के जन्म के सामान्यतः 11 दिन बाद संपन्न किया जाता है लेकिन अगर बच्चे का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में होता है तो नामकरण संस्कार जन्मतिथि से 27 दिन बाद गण्डमूल शांति करके किया जाता है। इसलिए हमेशा नामकरण संस्कार के लिए ज्योतिषी और पंडित जी से परामर्श अवश्य करें।
नामकरण संस्कार का ज्योतिषीय पक्ष
हिन्दू धर्म में बच्चों के नाम का निर्धारण उनकी कुंडली का अध्ययन करके किये जाने की परंपरा है। हालांकि आजकल माता-पिता अपनी पसंद के आधार पर नाम रखते हैं और कुंडली में नाम अलग लिखते हैं। कुंडली के माध्यम से बच्चे के नाम का निर्धारण करने के लिए राशि, नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है।
- शिशु के जन्म के ग्यारहवें और बारहवें दिन नामकरण संस्कार करना चाहिए।
- तिथियों में चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी के दिन नामकरण संस्कार नहीं करना चाहिए। हालांकि वार को लेकर किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं है। सप्ताह के किसी भी दिन नामकरण संस्कार किया जा सकता है।
- मृगशिरा, रोहिणी, पुष्य, रेवती, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, अश्विनी, शतभिषा आदि नक्षत्रों में नामकरण संस्कार शुभ माना गया है।
- अलग-अलग समुदायों में कुल परंपरा के अनुसार नामकरण संस्कार शिशु जन्म के 100वें दिन या एक वर्ष बीत जाने पर भी किया जाता है।
- नामकरण संस्कार के समय बच्चे के दो नाम रखे जाते हैं। इनमें एक प्रचलित और दूसरा गुप्त होता है।
- जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म होता है, उस नक्षत्र के अनुसार बच्चे का नाम रखना शुभ माना जाता है।
- माता-पिता चाहें तो अपनी इच्छा और कुल परंपराओं के अनुसार भी बच्चे का नाम रख सकते हैं।
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