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विद्यारंभ संस्कार के दौरान मुख्य रूप से की जाने वाली पूजा

  • गणेश पूजा- जिस प्रकार हर शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है, ठीक उसी प्रकार इस संस्कार को करने से पूर्व भी भगवान गणेश को पूजा जाता है।
  • सरस्वती पूजा- माता सरस्वती विद्या की देवी होती है इसलिए विद्या की प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती के पूजन का अपना एक विशेष विधान है।
  • लेखनी पूजा- शिक्षा के 2 महत्वपूर्ण शस्त्र कलम और स्याही जिनके बिना लिखना व शिक्षा प्राप्त करना असंभव है, इसलिए इनकी भी पूजा इस दौरान की जानी चाहिए।
  • पट्टी पूजन- कलम का उपयोग पट्टी या कापी पर किया जाता है इसलिए इस संस्कार में पट्टी पूजन अनिवार्य होता है।
  • गुरु पूजा- हर छात्र के लिए शिक्षक ही उसका सबसे बड़ा गुरु होता है, इसलिए विद्यारंभ संस्कार में गुरु पूजा का विशेष महत्व है।
  • अक्षर लेखन पूजा- इस पूजन के दौरान गुरु बच्चे से कापी या पट्टी पर पहला अक्षर व गायत्री मंत्र लिखवाते हैं। जब बच्चा पहला अक्षर लिखता है, तो गुरु को पूर्वी दिशा में बैठना चाहिए और बच्चे को पश्चिम में बैठना चाहिए।

विद्यारंभ संस्कार कब और कहाँ करें?

  • आमतौर पर विद्यारंभ संस्कार तब किया जाता है जब बच्चा 5 साल का हो जाता है।
  • हालांकि माता-पिता बालक का ये संस्कार उस वक़्त भी करा सकते हैं जब बच्चे की उम्र अपनी शुरूआती शिक्षा करने की हो चुकी हो।
  • चूंकि आजकल, बच्चे कम उम्र में ही स्कूल जाने लगते हैं, जिससे अब विद्यारंभ संस्कार के लिए उम्र 5 साल की बजाय 3 से 4 साल में भी किया जाता है।
  • विद्यारंभ संस्कार करने के लिए किसी विशेष स्थान को निर्धारित नहीं किया गया है।
  • यह हर उस स्थान पर किया जा सकता है जहां कोई भी बच्चा अपनी शिक्षा की शुरुआत कर सकता हो और उस स्थान पर इस संस्कार से जुड़े सभी अनुष्ठानों का पालन किया जा सके।

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