Vivah 2020
विवाह- एक पवित्र बंधन
विवाह जीवन के सबसे बेहतरीन और यादगार लम्हों में से एक होता है। जब दो ज़िंदगियां मिलकर एक नये जीवन की शुरुआत करती हैं, इसलिए कहते हैं कि शादी के बाद हर व्यक्ति के जीवन का नया अध्याय शुरू होता है। क्योंकि विवाह एक मांगलिक कार्य है और हर शुभ काम शुभ मुहूर्त में संपन्न होना जरूरी है। शादी के मुहूर्त का निर्धारण करने के लिए कुंडली में विवाह संबंधित भाव व भावेश की स्थिति, विवाह का योग देने वाले ग्रहों की दशा, अंतर्दशा तथा वर्तमान ग्रहों के गोचर की स्थित देखी जाती है।
कैसे करें विवाह मुहूर्त की गणना?
विवाह एक पवित्र बंधन है जिसमें बंधने से पहले कई प्रकार के विचार-विमर्श किये जाते हैं। इनमें युवक-युवती की सहमति के बाद कुंडली मिलान और इसके आधार पर कुंडलियों के आधार पर विवाह मुहूर्त निकाला जाता है। इनमें ग्रहों की दशा व नक्षत्र आदि का विश्लेषण किया जाता है।
- वर या वधू का जन्म जिस चंद्र नक्षत्र में होता है। उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर का भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- विवाह मुहूर्त निकालने के लिए लड़के-लड़की की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिए लिया जाता है।
- वर-वधू की कुंडलियों का मिलान कर लेने के बाद उनकी राशियों में जो तारीखें समान होती हैं। उन तारीखों में विवाह करना शुभ माना जाता है।
विवाह मुहूर्त में लग्न की उपयोगिता
जब कुंडलियों के मिलान के बाद शादी की तारीख तय हो जाती है। इसके बाद विवाह के लग्न का निर्धारण किया जाता है। लग्न का अर्थ है जिस समय पाणिग्रहण संस्कार संपन्न होता है यानि फेरे का समय और उससे पहले होने वाले रीति-रिवाज़। वैदिक ज्योतिष में विवाह लग्न में होने वाली गलती को गंभीर दोष माना जाता है। दरअसल तिथि को शरीर, चंद्रमा को मन, योग-नक्षत्रों आदि को शरीर के अंग और लग्न को आत्मा माना गया है। इसलिए लग्न के बिना जो भी शुभ कार्य किया जाता है, उसका फल वैसे ही बेकार चला जाता है, जैसे गर्मी के दिनों में बिना जल के नदी।
- वर-वधू के जन्म लग्न या जन्म राशि से अष्टम राशि का लग्न, विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
- जन्मपत्रिका का अष्टमेश यानि अष्टम भाव का स्वामी विवाह लग्न में स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से 12वें भाव में शनि व 10वें भाव में मंगल स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से तीसरे स्थान पर शुक्र व लग्न भाव में कोई पापी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न में क्षीण चन्द्रमा स्थित नहीं होना चाहिए, साथ ही चंद्र व शुक्र छठे और मंगल अष्टम भाव में स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से सप्तम भाव में कोई भी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न कर्तरी दोष युक्त नहीं होना चाहिए अर्थात विवाह लग्न के द्वितीय और द्वादश भाव में कोई पापी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
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